आज की कविता स्वामि जी जिन्हें हम दयानंद सरस्वती जी के नाम से भी जानते है इसलिए आज हं स्वामी जी पर कविता हिंदी में यानि स्वामी दयानंद सरस्वती जी पर कविता लिखी गई है ताकि विद्यार्थी जो कक्षा 1,2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 के क्षात्र है वे अपने निबन्ध लेखन में अच्छा कर सके।
स्वामी दयानंद सरस्वती जी का जन्म 12 फरवरी 1824 में हुआ था। इनके पिता का नाम करसंजी तिवारी था और माता का नाम यशोदा बाई था। जिस समय भारत में पाखण्ड और मूर्ति पूजा का बोलबाला था उस समय इसके विरुद्ध स्वमी दयानंद सरस्वती जी ने आवाज उठाई। उन्होंने भारत में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए 1876 में हरिद्वार के कुम्भ के मेले में पाखंडखण्डनी पताक पहरायी और पोंगा पंथियों को चुनवती दिया। इनके पिता बहुत बड़े जमीदार और सरकार के राज्य सूत विभाग में टेक्स कलेक्टर थे। अपने आस पास में इनका बहुत अच्छा नाम था। सौ दिन के बाद बालक का नाम रखा गया।
दयानंद सरस्वती जी के बचपन का नाम मूल संकर रखा गया। जब वे पांच वर्ष के हुए तब उनके पिता ने उन्हें खुद ही पड़ाना सूरू कर दिया। मूल संकर को प्रतिदिन रामायण और पुराणों की कथा सुनाने लगे। जब वह चौदह वर्ष के हुये तब उनके पिता ने वेदांग पढ़ाने के लिए छः पंडितों की नियुक्ति की पंडितों ने शिक्षा दी। जब उनके पिता ने उनके विवाह की तैयारी कर रहे थे तब वह घर से भाग गए। मूलशंकर जी को बचपन से ही पारवारिक लगाव नही था।
स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती पर कविता | Poem on Swami Dayanand Saraswati in Hindi
स्वमी दयानंद जी ने अपने गुरु विरजानंद जी को यह वचन दिया कि वे सदैव वेद आदि सत्य विधावो का प्रचार करेंगे। स्वमी दयानंद जी का कहना था की विदेशी शासन किसी भी रूप में स्वीकार करने के योग्य नहीं है। स्वमी जी ने अंत तक अपने वचन को निभाया। स्वामी जी ने राष्ट्र के लिए जो कार्य किया वो राष्ट्र के कर्णधारो के लिए हमेसा मार्ग दर्शन का कार्य करेगा। स्वमी जी ने विष देने वाले को भी क्षमा कर दिया।
यह भाव उनकी दया भावना का प्रतीक है। स्वमी दयानंद का नाम बहुत ही श्रद्धा के साथ लिया जाता है। कहा जाता है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी स्वामी जी ने भाग लिया था। इन्होंने कई ग्रंथ लिखे। स्वमी दयानंद जी की मृत्यु किसी के जहर देने से हुई थी।