भारत मे बसन्त ऋतु मार्च अप्रैल और मई के महीने में आती है बसंत ऋतु हम सभी को आनंद देने वाला समय है। आज वसंत ऋतु पर कविता लिखा मिलेगा, यह सर्दियों के तीन महीनों के लंबे समय के बाद आती है जिससे लोगो को सर्दी और ठंडी से राहत मिलती है बसंत ऋतु के समय तापमान में नमी आ जाती है और सभी जगह पेड़ पौधे और फूलो के कारण चारो तरफ हरियाली ओर रंगीन दिखाई पड़ती है! बसंत ऋतु के आगमन पर सभी लोग बसन्त पंचमी का त्योहार मनाते हैं बसंत के आने पर सर्दियों का अंत हो जाता है और सभी जगह खुशहाली छा जाती है।
भारत मे बसंत ऋतु को सबसे सुहाना मौसम मानते हैं और प्राकृतिक में सब कुछ सक्रिय हो जाता है और सब पृथ्वी पर सब नए जीवन को महसूस करते हैं बसंत ऋतु सर्दियों के तीन महीनों के अंतराल के बाद बहुत सी खुसिया और जीवन मे राहत आती है बसंत डीयू सर्दियों के मौसम के बाद गर्मियों के मौसम के पहले मार्च अप्रैल और मई के महीने में आती है बसंत ऋतु का आगमन सभी देशों में अलग अलग होने के साथ साथ तापमान भी अलग होता है इस महीने में कोयल पक्षी गाना गाने लगती है और सभी आम खाने का आनंद लेते हैं औऱ सभी जगह फूलो की खुसबू और रोमांचक से भरी हुई होती है।
वसंत ऋतु पर कविताएँ इन हिंदी। Poem On Basant Ritu In Hindi 2021
ऋतुराज बसंत पर कविता
पीर घनेरी हुई मोरी सखियाँ
देखो आयो मधुऋतु की बेला
पिया-पिया रटत मोरा जिया
प्रिय मिलन को है तरसे मन।
बैरी कोयल कूके अमराई के डालि पर
सुनकर बावरा हुआ जाये मोरा मन
ऐसे में पिया की याद कैसे न सताये
विचर रहा मन सपनो के देश पर।
मेंहंदी महावर चुड़ियां बिंदिया
करके सोलह श्रृंगार बैठी हूँ द्वारे
आनंद मग्न हुआ मन बावरी
नाचत होकर मग्न मन उपवन ।
सर सर करती मलयज पवन
महुआ की सुगंध करे मदहोश
ढ़ोल-मृदंग की थाप पर थिरके
पग पैजंनियाआेढ़कर वासंती चुनर
पीली-पीली जर्द सरसों खिले
खिल गये धरती अरू चमन
सज गई वसुधा देखो दुल्हन सी
नवल सिंगार कर प्रकृति अति पावन।
भौरों के गुंजन ने प्रेयसी के
तन मन में अगन अति लगाई
कृष्ण की बांसुरी से राधेरानी
व्याकुल यमुना तट पर उर्मिल प्रवाह बढ़ाई
कामदेव भी रति से मिलने को आतुर
प्रीत की पावन रीत निभाई ।
ऋतुराज के स्वागत को आल्हादित
सखियाँ थाल सजाये पीत चावल व अक्षत धर
गीत संगीत और पुण्य श्लोक जश
मंत्रमुग्ध कर्णप्रिय सुमधुर धुन पर।
-अंजलि देवांगन
aaya basant poem in hindi
बीत गया पतझड़ का मौसम,
आई रूत मस्तानी बसंत की ,
कोयल तान सुनाने लगी,
मन का पपीहा बोल रहा,,
कलियों को भी गुमां हुआ ,
जब भवंरा उस पर डोल रहा,,
बसंती हवाओं का झोंका,
मन मंदिर को भिंगो रहा,,
है दिलकश नजारों का ये समां ,
नैनों को पागल बना रहा
पीले फूल खिले सरसो के
लाल फूल आये सेमल के
अंगड़ाई ले डाली डाली
खुशियों की बदली है छाई
फागुन मस्त महिना आया
झूमा हर दिल का कोना
होकर मगन आया है बसंत
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत,
राजा है ये ऋतुओं का आनंद है अनंत।
पीत सोन वस्त्रों से सजी है आज धरती,
आंचल में अपने सौंधी-सौंधी गंध भरती।
तुम भी सखी पीत परिधानों में लजाना,
नृत्य करके होकर मगन प्रियतम को रिझाना।
सीख लो इस ऋतु में क्या है प्रेम मंत्र,
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत।
राजा है ऋतुओं का आनंद है अनंत,
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत।
नील पीत वातायन में तेजस प्रखर भास्कर,
स्वर्ण अमर गंगा से बागों और खेतों को रंगकर।
स्वर्ग सा गजब अद्भुत नजारा बिखेरकर,
लौट रहे सप्त अश्वों के रथ में बैठकर।
हो न कभी इस मोहक मौसम का अंत,
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत।
राजा है ऋतुओं का आनंद है अनंत,
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत।
Hindi Kavita On Basant Ritu
देखो बसंत ऋतु है आयी ।
अपने साथ खेतों में हरियाली लायी ॥
किसानों के मन में हैं खुशियाँ छाई ।
घर-घर में हैं हरियाली छाई ॥
हरियाली बसंत ऋतु में आती है ।
गर्मी में हरियाली चली जाती है ॥
हरे रंग का उजाला हमें दे जाती है ।
यही चक्र चलता रहता है ॥
नहीं किसी को नुकसान होता है ।
देखो बसंत ऋतु है आयी ॥
Short Hindi Kavita Basant Ritu
हर जुबा पे है छाई ये कहानी।
आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
दिल को छू जाये मस्त झोका पवन का।
मीठी धूप में निखर जाए रंग बदन का।।
गाये बुजुर्गो की टोली जुबानी।
आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
झूमें पंछी कोयल गाये।
सूरज की किरणे हँसती जमी नहलाये।।
लागे दोनों पहर की समां रूहानी।
आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
टिमटिमायें ख़ुशी से रातों में तारे।
पिली फसलों को नहलाये दूधिया उजाले।।
गाते जाए सब डगर पुरानी।
आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
Basant Ritu Par Kavita
देखो बसंत ऋतु है आयी ।
अपने साथ खेतों में हरियाली लायी ॥
किसानों के मन में हैं खुशियाँ छाई ।
घर-घर में हैं हरियाली छाई ॥
हरियाली बसंत ऋतु में आती है ।
गर्मी में हरियाली चली जाती है ॥
हरे रंग का उजाला हमें दे जाती है ।
यही चक्र चलता रहता है ॥
नहीं किसी को नुकसान होता है ।
देखो बसंत ऋतु है आयी।
"बसंत फिर आया"
लो बसंत फिर आया ,मन बसंती हो चला....
तन बसंती हो चला, धड़कन बसंती हो चला!!!!
फिर शाख से गिरने लगे हैं पीले सूखे पत्ते,
फिर उन्हीं शाखों पे आई, कोंपल नये हरे,
गुलाबी सी है ठंड और मदमस्त है बयार
फिर से देखो रुत में आ गई नयी बहार
फिर से देखो सरगम सा मन सतरंगी हो गया......
लो बसंत फिर आया ,मन बसंती हो चला....
तन बसंती हो चला, धड़कन बसंती हो चला!!!!
धरती ने ओढ़ ली है पीली धानी चुनर,
फिर से देखो हर जगह फूलों की लगी झालर,
धूप ने भी अपनी गुनगुनाहट कुछ तेज़ की है अब,
आम की डालो पे देखो बौरें लगने लगे हैं अब,
कोयल की कूक से हर बागों का रौनक बढ़ चला....
लो बसंत फिर आया ,मन बसंती हो चला....
प्रेम के मौसम की अगुवाई है देखो हो चली,
रंग-गुलालों से शहर-गावों की गलियां रंग गयी
कलियों और फूलों पर भंवरों का गुंजन बढ़ गया...
लो बसंत फिर आया ,मन बसंती हो चला....
तन बसंती हो चला, धड़कन बसंती हो चला!!!!
- अर्चना दास
Very Short Poem On Basant
सब दिग दिगंत में दिखाने लग गया बसंत।
सब हो रहे हैं मस्त पर कुछ हो गए चिंतित।
ऐसी बयार चल रही जिसमें सुबास है।
जो आदमी को दे रही एक नई आश है।
होना निराश न कभी जीवन में तुम कभी।
हर जिंदगी में एक दिन आता बसंत भी।
विभोर होती जिंदगी जब तक उसमें नव आश है।
आश की ही तरह जरूरी जीवन में परिहास है।
जो किसी का दिल दुखाए सत्य वह मत बोलिए।
नम्रता सद्गुणों की जननी अमल इस पर कीजिए।
दूसरे के व्यंग को मधु ही समझ मधुमास है।
इस तरह की जिंदगी में रास ही बस रास है।
इस मौसम में फूल खिलने सुरु कर देते हैं पेड़ो पर नए पत्ते उग आते हैं आसमान पर बदल छाये रहते हैं कलकल करती हुई नदिया बहती रहती है हैम यह भी कह सकते ह की प्राकृतिक मानव के साथ घोषणा करती है कि अब बसंत आ गया है अब यह उड़ाने का समय है इस मौसम की सुंदरता औऱ चारो ओऱ की सुंदरता मस्तिष्क को को कलात्मक बना देती है।
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साथ ही आत्म विश्वास के संघ नए कार्य करने में लिए शरीर मे उर्जा आ जाती है और तो और सुबह में चिड़िया की आवाज रात में चंद की चाँदनी दोनो ही सुहावने और डण्डे होते हैं रात में सब कुछ संत हो जाता है आसमान बिल्कुल साफ हो जाता है औऱ हवा बहुत थड़ी और तरोताजा हो जाती है यह किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मौसम होता है क्योंकि उनकी फसल खेतो में पकाने लगती है और यह समय उन्हें काटने का होता है