आज की कविता बहोत ही सुंदर और दिल के गहराइयो से लिखी गयी है। आप सभी ने कभी ना कभी एक कलम का उपयोग किया होगा लिखने के लिए। आज हर इंसान कलम का उपयोग करता है ओर चाहे तो कोई भी हो।

कलम पर कविता
कलम का काम है लिखना,
वो तो बस वही लिखेगी,
जो आपका दिमाग
लिखवाना चाहेगा ,
सत्य-असत्य,अच्छा- बुरा
अपना या फिर पराया I
निर्जीव होते हुए भी ,
सजीवता का आभास
कराती है सबको,
भावनायें,विवेक,विचार
सब तो आपके आधीन है
ये कहाँ कुछ समझ पाती है I
बहुत सोच समझ कर
उठाना ये कलम,
ये स्वयं का परिचय नहीं देती
ये देती है परिचय आपके,
बुद्धि, विवेक और संस्कार का I
स्वरचित ( मंजू कुशवाहा)
मेरी ये क़लम.......
मेरी ये क़लम,किस ओर जा रही है ,
प्रणय गीत लिखते- लिखते ,
विरोध जता रही है ।
मैं स्वतंत्र ,तुम स्वतंत्र ,हम स्वतंत्र,
ये स्वतंत्रता भी बवाल मचा रही है ।
राष्ट्र हित से बढ़कर कोई बात नहीं ,
मगर ये जाति, धर्म, भाषा में उलझ कर ,
दो धारी तलवार होती जा रही है।
मेरी ये क़लम किस ओर जा रही है ,
प्रणय गीत लिखते- लिखते विरोध जता रही है ।
कुछ लकीरें माथे पे, कुछ लकीरें हाथों पे ,
कुछ लकीरें धरा पे,बंटते , बंटते क़लम भी बंटती जा रही है ।
मेरी ये क़लम किस ओर जा रही है ,
प्रणय गीत लिखते- लिखते विरोध जता रही है ।
रंगों में भी भेद है , ये मुझको खेद है ,
एक भाव,प्रेम राग, एकता में बांधने जो चली थी ,वो स्वयं ही
टूटती जा रही है ।
मेरी ये क़लम किस ओर जा रही है ,
प्रणय गीत लिखते- लिखते विरोध जता रही है ।
जिसने तलवारों को भी धार दी ,
जिसने क्रान्ति को भी आग दी ,
फूंकी है मुर्दों में भी जान जिसने ,
वही अब आलोचना से घबरा रही है ।
मेरी ये क़लम किस ओर जा रही है ,
प्रणय गीत लिखते- लिखते विरोध जता रही है।
शुभ्रा पालीवाल ।